विषय :-विश्वास,,,
धरा को विश्वास है चाहे जितना भी नभ तड़पाए मुझे एक दिन,
प्यार के मोती बरसेंगे मुझ पर मेरी तड़प दूर हो जाएगी मैं शीतल हो जाऊंगी, हरी भरी हो जाऊंगी,
इसलिए आज तड़पना मुझे मंजूर है।
धरा शोक नहीं मनाती।
समंदर को विश्वास है बूंद बूंद पानी सूरज ले जा रहा है,
लेकिन बूंद बूंद के बदले उसे वापिस में करोड़ों बूंदे मिलनी है इसीलिए आज समंदर को भी सूखना मंजूर है।
समंदर शोक नहीं मनाता।
वृक्ष समझता है पतझड़ में वह सुखा हो जाएगा,
लेकिन उसी आस में उसी विश्वास में,सूखा होता है, वसंत में फिर से पहले से ज्यादा खिल जाएगा
उपवन शोक नहीं मनाता। ।
उसी तरह हमें भी पूरा विश्वास है,
जो भी चुनौतियां आएगी,
चाहे जितनी भी कठिन परिस्थिति यों का निर्माण होगा,
दु:खों की आग में जलकर हम,
कुंदन बनकर ही बाहर आएंगे,
इसीलिए हमें भी शोक नहीं मनाना चाहिए।
।।स्वरचित डॉ दमयंती भट्ट।।
✍️...© drdhbhatt...