मां भौम पे थोडी प्रित जगा अपने बच्चोंमें आग जगा,
कुछ लोग यहां बैठे बैठे सीने को उसके जला रहा।
हर गली गली हर चौराहे आंधी आवाम में ऐसी जगा,
जो दुश्मन है मिट्टि के ये जल जाये बस शोलों की तरहा।
है फैल चुका इस कदर झहेर अब तीर तेरा तू ऐसे चला,
ना सांप डसे लाठी तूटे ये देश रहे आबाद मेरा।
यासिन अफझल अब्दुल्ला या अब कोई दिखे जल्लाद बडा,
तू कबर उसीकी खुदवा दे जो इस मिट्टि का होन सका।
- "भीतर..."