Hindi Quote in Poem by ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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जेठ की दुपहरी

जेठ दुपहरी है चढ़ी, बरसे नभ से ताप।
सेवन पानी का करो, बनता उड़कर भाप।

आग उगलता सूर्य है, गरमी करती वार।
लू थपेड़ों में जले, देखो यह संसार।

व्याकुल होते जीव सब,ताप करे बेहाल।
पानी सूखा कूप में,बिलखें जल के लाल।

मानव समझो ताप को,करिये उचित निदान।
वृक्षा रोपण तुम करो,रक्षित होंगे प्रान।

उत्सव कोई भी मने, रखो प्रकृति का ध्यान।
रोपण पौधों का करो,समझ जगत की शान।

जेठ दुपहरी दे रही,मानव को संदेश।
अर्थ लोभ छोड़ो मनुज,झूठा माया वेश।

विनती करता ओम है, करो धरा श्रंगार।
हरियाली भू की बढ़े,मिटे ताप का वार।।

ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

-ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

Hindi Poem by ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम : 111806227
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