मन मेरा नाराज माँ !
मनाऊँ कैसे?
हृदय पर रखा रखा पत्थर ये
हटाऊँ कैसे?
न खुशी न शान्ति है,
हर एक क्षण भरी अशान्ति है?
प्राण भी मानो पीड़ा दे रहे है ,
मृत्यु से भी नेह अब खो रहे है?
जलती हुई धरा पर जैसे पांव हो,
दूर तक दिखती न कोई छांव हो |
मानती हूँ मैने बहुत सताया होगा,
करती रही अनदेखा शायद उसे रूलाया होगा |
अपराधी हूँ उसकी बात नही सुनती ,
बन्द आँखो से किस्से हजार गुनती |
रूठ कर बैठा मुँह फुलाया है ,
देखकर पीड़ा हृदय भी सूज आया है |
रहकर हृदय मे हृदय से बात नही करता ,
रूठा हुआ है कब से मुझे माफ नही करता |