दो मुझे आँचल !
आज रोने की इच्छा है ,
उठ रही जो पीर तुझमे खोने की इच्छा है |
नही है कोई सुनने वाला न किसी की खोज ,
सुनाने की इच्छा है |
बस तेरे तेरे आँचल मे सर रख ,
रोने की इच्छा है|
मर चुकी हूँ मै या अभी जिन्दा हूँ,
जो चाहता ही नही उड़ना शायद वो परिन्दा हूँ |
नाम तेरा लेकर किसी ने फूँक मारी थी,
जल उठी लौ ,बुझती जो चिंगारी थी |
घिरे थे बादल आसमान नीला था ,
था सावला वस्त्र पीला था ,
सर पर जटायें लट बनी ,
चन्द्रमा सजीला था ,
था आभाष किन्तु नही ,
नैनो की छाया थी,
मगर छाई आकृति |
केवल प्रेम बिन्दु थी,
शान्त थी अशान्ति के पूर्व सी ,
था पास , न निराश थी
न आभाष था अशान्ति का ,
या था खुद से छल या
छल की ही माया थी,
बुनने लगे सपने नैयनो मे
पहर दर पहर ,
टूटने से लगे बिन जागे ही जो मगर|
.........क्रमशः
07/4/2022