प्रात पखेरू उड़ चले, दाने की है खोज।
नन्हें पंछी डाल पर, राह निहारें रोज
कविता की लहरें सदा, करतीं आत्मविभोर।
जीवन के संघर्ष में, प्रेरक हैं हिलकोर ।।
सागर की सिंह गर्जना, भरती है हुंकार।
लड़ें चुनौती से सभी, मिलती कभी न हार।।
शांत सरोवर दे रहा, जग को यह संदेश।
अंतस से उगते कमल, मोहक छवि परिवेश।।
राष्ट्र प्रेम का यह समय, वैचारिक संधान।
संस्थाएँ सब कर रही,मानव का उत्थान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज
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