अक्षय तृतीया (आखा तीज)
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अक्षय तृतीया को आखा तीज भी कहते हैं, ये वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है, इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार कहे जाने वाले भगवान परशुराम जी का जन्म माता रेणुका के गर्भ से हुआ था इसलिए इस दिन को परशुराम जयंती के रूप में मनाते हैं।
हिन्दू पौराणो के अनुसार महाभारत के युद्ध का अंत इस दिन ही हुआ था। इस दिन महर्षि वेद व्यास ने महाभारत लिखना आरंभ किया। इस दिन मां गंगा धरती पर अवतरीत हुई थी। पाण्डव पुत्र युधिष्ठिर को इस दिन अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी। इस पात्र की विशेषता यह थी कि उस में कभी भोजन खत्म नहीं होता था। पौराणिक कथाओं अनुसार इस दिन माता पार्वती ने अन्नपूर्णा देवी के रूप में अवतार लिया था। त्रेतायुग और सतयुग का आरंभ भी इस तृतीया के दिन हुआ था इसलिए ही इस दिन का हिंदू धर्म और पुराणों में बहुत महत्व है।
अक्षय तृतीया के दिन कोई शुभ कार्य बिना पंचांग देखे किया जा सकता है इस दिन विवाह, गृह - प्रवेश, नामकरण और पिंड - दान आदि बिना पंचांग देखे किया जा सकता है। अक्षय तृतीया के दिन भगवान् विष्णु को सतू का भोग लगाना चाहिए। इस दिन पूजा, हवन, पवित्र - स्नान, जप और दान आदि किया जाना उत्तम माना जाता है इस दिन जो भी सच्चे मन और श्रद्धा के साथ भगवान् ध्यान करता है, वो चाहे महा पापी क्यू ना हो उसे पुण्य की प्राप्ति होती है हैं, इस दिन गीता के अठारहवें अध्याय का पाठ करना उत्तम माना जाता है। इसदिन कोई भी ठंडी वस्तु या पेय पदार्थ का दान करना चाहिए।
अक्षय तृतीया के दिन घर के बड़ो का आर्शीवाद प्राप्त करना चाहिए। इस दिन जो भी कार्य करते हैं, उसके अनुरुप ही फल की प्राप्ति होती हैं, अतः कोई भी कार्य करने से पहले फल के बारे में अवश्य सोचे ऎसा पुराणों में कहा गया हैं।
ये दिन पूरे देश में एक त्यौहार की तरह मनाया जाता है, हर जगह इसे मनाने का अलग तरीका और इस का अलग महत्व है, किन्तु सभी जगह इस दिन को अति शुभ और मंगल माना जाता है, इसलिए इस दिन सब से अधिक विवाह और मांगलिक कार्य संपन्न होते हैं।।।।
Uma vaishnav
मौलिक और स्वरचित