मैं और मेरे अह्सास
महफिल में शमा ख्वाबों की जलाई है l
जैसे तैसे दिलसे याद उनकी भुलाई है ll
परियों की कहानियों सुना सुनाकर l
हमने हररोज याद उनकी सुलाई है ll
भुला दिया था साथ गुज़रा लम्हा l
वक्त बेवक्त याद उनकी रुलाई है ll
मेरी मुहब्बत का अह्सास है उनको l
नसीब में खुदा की बहोत भलाई है ll
१-५ -२०२२
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह