संविधान
संविधान से झाँकती, मानवता की बात।
दलगत की मजबूरियाँ, कर जातीं आघात।।
वेदांत
शांति और सौहार्द से, आच्छादित वेदांत।
धर्म ध्वजा की शान यह, सदा रहा सिद्धांत।।
विहान
आभा बिखरी क्षितिज में,खुशियों की सौगात।
नव विहान अब आ गया, बीती तम की रात।।
सरोज
मन ओजस्वी जब रहे, कहते तभी मनोज।
सरवर के अंतस उगें, मोहक लगें सरोज।।
आराधना
देवों की आराधना, करते हैं सब लोग।
कृपा रहे उनकी सदा, भगें व्याधि अरु रोग।।
मनोज कुमार शुक्ल मनोज