एक अरसा हो गया खुद से मिले .....
लगता है हम खुद के लिए ही ईद का चाँद हो गए ,
कुछ अजनबी - सा लगा मेरा ही चेहरा मुझे जैसे
कह रहा हो - आओ ! मैं तुम्हें तुम्हीं से मिलवाता हूँ ।
जो खिला रहता था हरदम कभी गुलाब - सा
आज क्यों वह फूल - सा चेहरा सहसा ही मुरझा गया ?
जीवन इक दरिया है तो तू बन उस माँझी - सा
जो अपनी नैया पार लगाने को तूफ़ानों से भी टकरा गया ,
आज मेरा चेहरा ही मुझे एक नया सबक़ सिखा गया ।