घर में रहकर भी मुझे घर की याद आती है ।
वो घर, जहाँ चिड़िया - सी चहका करती थी,
जो आँगन में मैं कली - सी महका करती थी ।
छूट गया वो घर - आँगन अब जहाँ नाज़ों से पली थी ,
खुद को भुलाकर जहाँ ख्वाहिशें पूरी हमारी की जाती थी ।
अब स्वावलंबी तो हम हो गए पर फिर भी कुछ कमी - सी है ,
ख्वाहिशें पूरी करने में सक्षम हैं पर फिर भी वो ख़ुशी नहीं है ।
वो अल्हड़पन भरी हँसी - ठिठोली की याद मुझे अब आती है ,
इसीलिए घर में रहकर भी मुझे घर की याद आती है ।