महिलाएँ जब तक धर्म , न्याय, समर्पण ,सहनशीलता जैसे गुणों को नहीं त्याग करेंगी उसका मूल्य उनकी पुत्री सन्तानें चुकायेगी क्योंकि आप जो पुरुषसत्ता का अन्याय खुद पर सहते हैं तो विवश होकर नियति मान लेती हैं
पाप पुण्य की दुहाई देकर आपको सेवी भाव से प्रेरित किया जाए तो आप उसे समर्पण मान लेती हैं और हिंसा, प्रताड़ना पर समाज की दुहाई देकर पति परमेश्वर घोषित कर देती हैं वही अंश अपने पुत्री सन्तान के कोमल हृदय में भरती जाती हैं क्योंकि आपने जुल्म देखा और जिया है । और बेटियाँ ससुराल में माँ के नक्शे कदम पर चलकर ना जाने कितने वेदनाओं को समेट लेती हैं । इसका सूक्ष्म कारण है
पुरुष प्रधानता की वैदिकयुगीन चालें ! इससे मुक्त होने के लिए औरतों को न्याय का महाभारत एकजुट होकर लड़ना होगा।
-गायत्री शर्मा गुँजन