शीर्षक: आधुनिक रिश्ते
दुनिया बदल रही, बदला इंसान
रिश्तों की भी खत्म हुई पहचान
खून से बने, वो भी हो रहे बेजान
भूल रहा इंसान, कौन है भगवान ?
साजो-सामान की दुनिया का चमत्कार
अर्थ का रुतबा बढ़कर हुआ दैत्यकार
रिश्तों की दुनिया मे मचा रहा हाहाकार
सब कहते अब सारे बंधन लगते बेकार ।।
रिश्तों की रस्में भी अब बदल गई
तंग जिंदगी संस्कारो में कसमसा गई
स्वार्थ की सुनहरी परतें ललचा गई
पिरोये प्रेय-रिश्तों की अटूट डोर टूट गई ।।
क्या वक्त कभी फिर अपनत्व का कलश भरेगा ?
फिर रिश्तों के गुलशन का हर फूल मुस्करायेगा ?
प्रेम का आकाश, स्नेह के सितारों से जगमगायेगा ?
"कमल" शंकित दिल, शायद ही कुछ कह पायेगा ।।
✍️ कमल भंसाली