मैं और मेरे अह्सास
बारिश के पानी मे बह रहीं कागज़ की क़श्ती l
जान से प्यारी बचपन की अनमोल सी दोस्ती।
न कल की चिंता ना आज की फ़िकर होती थी l
सुबह शाम रात दिन करते रहते थे मस्ती ll
एक दूसरे पर जान निसार करते थे लोग l
मिलझुल कर रहनेवाली कहा गई वो बस्ती?
५-४-२०२२
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह