नहीं विश्राम
------------
ज़िंदगी के मोड़ से गुजरता
बटोही सा मन
पसर गया रंगने को
देख फागुनी चौराहा---
भूल गया
क्षण भर को---
चलना है काम
नहीं विश्राम --
निरंतर चलना है
जूझना है मार्ग से
प्यार से ,स्नेह से ,विश्वास से !
अन्यथा --
खो जाएगा
गुम हो गई हवाओं में
कही --अनकही सदाओं में
बीती हुई कथाओं में ---
वृक्षों में ,लताओं में
कही-बिन कही सदाओं में--
उठ ! दे दिशा एक
प्रकाश भरी
चलना है निरंतर तुझे
बनाना है एक
प्रशस्त मार्ग
सभी के लिए ----
डॉ. प्रणव भारती