तो आख़िरकार चाहे या अनचाहे कल से मेरा रजत वर्ष शुरू हो गया
सालो से एक लाइन बोहोत बोती थी
''बुढ़ापा आ रहा है''
और बस ये आखरी वर्ष है बुढ़ापा आने में।
पच्चीस,
वेसे मेरे लिए सिर्फ एक नंबर नहीं था एक डेड ताइन थी.
मेरा मानना है के २५ के बाद का जीवन फिक्स है
पहले से ही तय किआ हुआ , जिसे गृहस्थ जीवन कहते है जिसमे कुछ नए की उम्मीद न के बराबर होती है, हाँ हाँ अपवाद हर जगह है, में मना नहीं कर रही पर वो गाना है न
''हम होंगे कामयाब एक दिन पर वो एक दिन कोनसा ?''
कोई तोह एन्ड डेट होनी चाहिए ने तो मेरे
जीवन में थी 27th मार्च 2023
बस ऐसा लग रहा है जैसे जीवन का एक साल बाकि है, फिर शायद कुछ बदलेगा नहीं जो जैसा हे वेसा ही रहेगा
मतलब उम्मीद कुछ बड़ा होने की ख़तम हो जाएगी इस दावे पे के २५ साल में नहीं हुई वो अब क्या होगा
इस मृत लकीर पे पोहचने से पहले जितना सफर तय करना था न उसका आधा भी अभी तक तय नहीं हुआ है मुझसे। ना आवक के आकड़ों में ना ही रिस्तो के मायनों में ।
पर सुकून भी है के उन रास्तों पे में एक बार ही सही चली तो हूँ वो रास्ते मेरे कदमों को पहचानते है भले ही, मंजिल का मंजर इन आँखों ने नहीं देखा।
आधा ना सही पर थोड़ा तो थोड़ा किआ है वो सब जो करना था।
हाँ जहा से शुरू किआ था ना वहां से तो काफी आगे हूँ में,
पर मेरा रास्ता लम्बा निकला और में कभी बिच रास्ते थक गई तो कभी बैठ गई कोई मिला तो बात करने रूक गई तो कभी किसी को साथ ले लेने कि चाहत हो गई शायद यही
कही मंजिल का मंजर दूर रह गया।
हाँ इच्छा तो रजत वर्ष के बाद भी पूरी हो सकती है, जिसके अनेक उदहारण आप क्या में भी दे सकती हूँ पर फिर भी डेड लाइन की उनसेरटेनिटी की सर्टिनिटी तो तय ही है
कोई ना अभी जो एक साल बचा है ना उसे एक जश्न की तरह मानना है।
जैसे बाल रंगवाये है बिना बालों की डैमेज का सोचे, वैसे ही अब जीवन के बचे कुचे रंगों को भी जी ले ना हे