विषय-कान्हा संग होली
होली आई, होली आई,
मन में रंगों की बहार है लायी।
लाल,हरे और पीले,नीले,
रंगों की बौछार है छायी।।
जहाँ भी देखो रंग-गुलाल है,
तन-मन रंगीन हो गया है।
रंगों से भरे इस त्यौहार में,
मन भी प्रफुल्लित हो गया है।।
कान्हा तुम भी आना होली में,
तुमको रंग है मुझे लगाना।
तुम्हारे संग मैं मस्त हो जाऊं,
न हो फिर कोई दूसरा ठिकाना।।
कान्हा तेरे प्रेम के रंग में,
डूबना मैं तो चाहती हूँ।
और रंग न दूसरा चढ़े फिर,
ऐसे रंगना मैं चाहती हूँ।।
सारे रंगों में प्रेम का रंग तो,
सबसे ही ज्यादा गहरा होता है।
जिसे भी चढ़ जाये ये रंग तो,
जीवनभर उसी में रंगा होता है।।
कान्हा तुम्हारे प्रीत के रस में,
मैं पूरी तरह डूबना चाहती हूं।
रंग लगाना तुम हर अंग में,
ऐसे भीगना मैं चाहती हूँ।।
होली के इस अवसर पर,
राधा संग तुम आना कान्हा।
रास रचाना राधा के संग,
और एक गोपी तुम मुझे बनाना।।
मैं भी तुम्हारे प्रेम के रंगों में,
पूरी तरह से भीगना चाहती हूँ।
जैसे राधा संग अन्य गोपियाँ है,
वैसे ही मैं भी रहना चाहती हूँ।।
प्रेम न कर पाओ तुम तो कान्हा,
भक्ति रंग में मुझे रंग देना।
तुम्हारे सिवा कुछ दिखाई न दे,
मीरा जैसा तुम वर दे देना।।
होली के इस त्यौहार पर,
मेरी तुमसे बस यही विनती है।
साथ न छोड़ना कभी भी कान्हा,
एक दासी ये तुमसे कहती है।।
मेरा पूरा जीवन तुम तो कान्हा,
भक्ति और प्रेम से भर देना।
ये जीवन रंगीन बना रहे,
ऐसे रंग में मुझे रंग देना।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री