વ્યંગ કાવ્ય
👂 कान की पूकार👂
हम कान 👂👂दो जुड़वां भाई
हमारी हैं दर्दभरी ऐसी कहानी
लेकिन हमारी किस्मत ही ऐसी
हमने एक दूसरे को देखा नहीं
कौन से श्राप के कारणवश हमें
विपरित दिशामें चिपकाया हमें
दु:ख सिर्फ इतना ही है हमें
सिर्फ सुननेको मिलती है हमें
एक दूजेकी गालियाँ ,तालियाँ
अच्छा या बुरा सुनाते हर कोइ
कभी कोइ सज्जन मिल जाता
सत्संग ,कथाका श्रवण कराता
मगर हम कुछ कह सकते नहीं
हमें खूंटी समझने लगे हैं सब
चश्मेका बोझ भी हैं डाला गया
फ्रेमकी डंडीको हम पर फँसाया
चश्में से आंखें अच्छा हैं देखते
तो हमें बीचमें क्याें हैं घसीटते
पढ़ाईमें गलत बोलती थी जीभ
तब मास्टर मरोड़ते हमारे कान
औरतने छेदन हमारा करवाया
झुमका दो कान पर लटकाया
आँखोंको काजल मुँह को क्रीम
होठों को लगाते हैं लिपस्टिक
कभी बाल कटिंगमें हम कटते
निकले लहु हम दर्द सह लेते
हमें डेटोल लगाके चुप कर देते
मजबूरी हैं हम कुछ नही बोलते
एयरफोन हम ही हैं संभालते
सुनते ही सब मनमें खुशी पाते
ये दुश्मन कोरोना जबसे आया
मास्कका झंझट हम पर लाया
अब तो प्रार्थना करते कुदरतसे
कानकी पुकार सुने कृपा करके
❣️म न❣️🍁केनेडा🍁
⛄️१८-०२-२०२२⛄️