1 मध्वासव
मध्वासव-मधुमास में, छाया है चहुँ ओर।
बिन पीए ही मगन हैं, कुछ की होती भोर।।
2 विजया
विजया का वरदान है, झुका रहे यह शीश।
बनी रहे सब पर कृपा, फल देते जगदीश।।
3 मदिर
मदिर नयन हैं बावले, तेज चलाती बाण।
दिल को घायल कर रही, सबको देती त्राण।।
4 अंगूरी
अंगूरी छलका रही, फगुनाई की धार।
पीने वाले पी रहे, यह मधुमय की मार।।
5 मन्मथ
मन्मथ ने बिखरा रखी, चारों ओर बहार।
मुदित धरा भी देखती,उछले नदिया धार।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "