कुसुमाकर फिर आ गया, लेकर मस्त बहार।
गली-गली में झूमते,मस्ती में नर-नार।।
ऋतु वसंत की धूम है, बाग हुए गुलजार।
रंग बिरंगे फूल खिल, लुटा रहे हैं प्यार।।
हँस पलाश कहने लगा,फागुन आया द्वार ।
राधा खड़ी उदास सी, कान्हा से तकरार।।
सेमल का यह वृक्ष है, गुणकारी भरपूर।
मानव का हित कर रहा,औषधि में है नूर।।
वासंती मौसम हुआ, तन-मन चढ़े खुमार।
मादक महुआ सा लगे, होली का त्यौहार।।
चखा नहीं फिर भी चढ़ा, मादकता का जोर।
महुआ मन में आ बसा, तन में उठी हिलोर।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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