कलम मे भरकर पीड़ाओ को कागज पर उड़ेलती हूँ केवल इसलिए की सब चीजो का अन्त है तो पीड़ा क्यों नही , खत्म होगी स्याही एकदिन पन्ने भी फिर ! क्या होगा ? क्या आनन्द? अगर हाँ तो कैसा? है यह प्रश्न हृदय मे एक आस सी या, होगा केवल मौन ही पीड़ा और आनन्द से परे शब्दहीन, रसहीन, गंधहीन, स्पर्शहीन |
-Ruchi Dixit