विषय- मित्रता
मित्रता तो किसी की,
कभी मोहताज नहीं होती।
ये तो हर किसी के भी,
पास ही नहीं होती।।
मित्रता का सम्बंध तो,
सब रिश्तों पर भारी है।
सुख दुख का साथी बनकर ही,
एक दूसरे से यारी है।।
दोस्ती को तो निभाने की,
कोई भी सीमा ही नहीं होती।
जिसे मान लो दिल से अपना,
उस पर कोई भी बंदिश नहीं होती।।
प्रेम में तो कोई भी,
छोड़कर चला जा सकता है।
लेकिन पूरी ईमानदारी से रिश्ता,
एक मित्र ही निभा सकता हैं।।
प्यार के टूटने पर तो,
कोई भी सामने नहीं आता।
अपने मित्र को संभालने के लिए,
दूसरा मित्र ही साथ निभाता।।
मित्रता तो कोई खेल नहीं है,
जो किसी से भी हो जाये।
सुख दुख का साथी बनकर ही,
पूरे दिल पर ही छा जाये।।
मित्र अगर बनाना तो,
कृष्ण और सुदामा के जैसा।
पूरी दुनियां देख लेंगी,
उनका उदाहरण हो जैसा।।
मित्रता में नहीं जात पात का बंधन,
ये तो सबसे अनजान हैं।
अमीरी और गरीबी के क्षेत्र से,
दोस्ती हमेशा ही वीरान है।।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री