कभी मुसाफिर बन जाती हूं अपनी ही शहर में"
कभी बेगाने शहर भी कभी अपना सा लगता है!!
कहीं कहीं से चेहरे तुम जैसा लगता है!
तुमको ना भूल पाएंगे कभी ऐसा भी लगता है!!
ऐसा भी एक रंग है जो कभी करता है मुझसे बातें"
जो भी इनको पहन ले वह अपना सा लगता है!!
क्या मैं बदल जाती हुं या वे बदल जाते हैं"
जो भी मिलता है कुछ दिन तक ही अच्छा लगता है!!
क्या सुनाऊं हाल और क्या है गाथा गांउ
कल सब कुछ अच्छा था आज फिर तन्हा सा लगता है
- maya