शीर्षक
*नव- वर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है*
मुझे तो नव- चिन्तनों से नहाना है
स्नेह- सुधा को और भी बढ़ाना है
रुठों को फिर से एक बार मनाना है
नव-वर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है।
टूटी हुई साँसों के तारों को जोड़ना है
की हुई लापरवाहीयों को समझना है
स्वास्थ्य को प्रखर-कांतिमय बनाना है
नववर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है।
मकसदों को मंजिल का दर्शन कराना है
कर्म के पथ पर आगे बढ़ते ही जाना है
जीवन का आस्थाओं से संगम कराना है
नववर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है ।
हर पल की कीमत को और बढ़ाना है
घट रही उम्र- पूंजी को और थामना है
गूजरें पलों को स्वर्ण-धरोहर बनाना है
नववर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है।
नव उर-संयम के आनन्द को जगाना है
आत्मिक ज्ञान से फिर उसे सजाना है
जग के ऋण को वापस कर के जाना है
नववर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है ।
कविता का सृजन तो सिर्फ बहाना है
अब सबके दिल में मुझे बस जाना है
पाये दर्द को ही अब मरहम बनाना है
नव वर्ष तो सिर्फ मेरा एक बहाना है।
रचियता : कमल भंसाली