जब किसी व्यक्ति में अहं का समावेश हो जाता है तब उसके लिए केवल उसका अहं ही प्रधान बन जाता है एवं परहित उसके लिए गौण हो जाता है । अहंकार के कारण वह अपने पद की गरिमा को भी भूल जाता है ।
जब किसी भी संस्थान में उच्च पद पर आसीन व्यक्ति परहित की अपेक्षा अपने अहं को महत्त्व देने लगता है तो उस संस्थान का गर्त में जाना निश्चित है ।