सर्द मौसम,सर्दी
सर्दी के उस मौसम में,
तुम्हारा सड़क पर मुझे यों मिल जाना।
यों ठिठरती तेरी देह देखकर,
मेरा तुझपर नजर टिकाना।
देख तेरी बड़ी-बड़ी आँखों को,
दिल जोरों से धड़का था।
तुझे एक टक देखने पर,
तू तो मुझपर भड़का था।
देख तेरे अधरों की लाली,
मन प्यासा तो हो गया था।
कोमल पंखुड़ी जैसे नाजुक,
मन विचलित तो हो गया था।
शायद उस सर्द रात में,
तुम्हें किसी वाहन का इंतजार था।
कब मिलेगी तुम्हें कोई टैक्सी,
इसी बात पर मुझे सोच विचार था।
तुम्हें इस तरह अकेला देखकर,
मेरे मन में एक आवाज है आई।
सर्द रात में खड़ी एक लड़की,
ये बात तो मेरे मन को न भाई।
मैंने उससे कहा जरा सुनिये,
क्या तुमको किसी का इंतजार है।
वो बोली मेरी बस छूट गयी,
ये ही तो मेरा दुर्भाग्य है।
इस सुनसान सी राह पर,
तुम्हारा ठहरना उचित नहीं है।
मैं तुमको घर पर छोड़ दूं,
क्या मेरा ये कहना सही है।
मेरी बातों को सुनकर तो,
उसको कुछ आभास हुआ था।
थोड़ा सोच-विचार करके तो,
मन चलने को तैयार हुआ था।
मेरी बाईक स्टार्ट करते ही,
वो तो पीछे बैठ गयी थी।
शायद उसके दिल में भी,
मेरे लिए जगह बन गयी थी।
वो सर्द मौसम का सुहाना सफर,
आज भी हम दोनों को याद है।
आज है हम दोनों पति-पत्नी,
पर उस सफर की कुछ अलग ही बात है।
किरन झा मिश्री
-किरन झा मिश्री