बड़े पैमाने रहे उन रिश्तों में
लंबे फासले क्यों न सहमे चले ?
कुछ देर तक जो रुककर राह तकते
आसान हो जाता उस पर बेसहारा चलते
इतराना क्यों अरे महोब्बत ही तो हुई है !
अगर हुई भी तो कोई बेवजह से हुई है
अगर पूछे जो कोई वजह तो बता देना
कमबख्त उस जालिम नजर से हो गई है
आखिर नजरे वह चुराए और हम तब भी शरमाए ?
वह जो ख्वाब हम अकेले देखते हुए बरसो से !
तुम पूरा होने दो ऐसी तुमसे कोई उम्मीद नहीं जताई ,
तुम बस इतराना बंद करो वरना कर देगे इश्क की कारवाई !
उर्मि