🌎 'धर्म का जगत' कब निर्मित होगा. . . ? 🌎
// ओशो की कलम से //
अगर तुम भी इस इंतजार में हो कि एक दिन पूरे विश्व में धर्म की पताका फहराने लगेगी, तो अंधेरे में हो तुम. . . !
झूठे सपने मत देखो। जगत अधर्म का ही रहेगा।
इसमें कभी-कभी धार्मिक व्यक्ति आते रहेंगे। यह रात तो अंधेरी रहेगी। हाँ इसमें कभी-कभी कई तारे जगमगाते रहेंगे।
तुम यह प्रतीक्षा मत करो कि कब पूरी रात बदलेगी। तुम तो इसकी फिक्र करो कि तुम जगमगाने लगे हो या नहीं !
तुम जगमगा गए, तो समझो तुम्हारे लिए रात समाप्त हो गई।
तुम जिस दिन जगमगाए, समझो तुम्हारी सुबह हो गई।
मैं इस बार को बार-बार दोहराना चाहता हूं कि 'यह क्रांति' व्यक्ति के अन्तःस्थल में ही घटती है। यह बड़ी ही आंतरिक है और अत्यंत निजी रूप से मिलती है। किसी समूह, किसी भीड़ से इसका कुछ नाता नहीं। इसलिए सर्वप्रथम ख़ुद को बदलो. . . ख़ुद अपने से शुरुआत करो. . . !
(अष्ट्रावक्र महागीता -2/10)