मैं और मेरे अह्सास
दिलों मे मुहब्बत की आग भड़कानी पड़ेगी l
बुझी हुईं चिनगारी फ़िर सुलगानी पड़ेगी ll
नफरत को दिल मे लिए सालो से जीते हैं l
दुनिया को नई दिशा दिखलानी पड़ेगी ll
न जाने किस आधी में फंसे हुए हैं ये l
घिसी-पिटी सोच को बदलवानी पड़ेगी ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह