मन ! मुझको तू पहुचाँ देना मुझे उसकी शरण लगा देना | मिट जाये हृदय की पीड़ा सब कुछ, ऐसी जुगत लगा देना | बैठा तुझमे जो राम बना , देखे तुझको घनश्याम बना , माँ जगजननी सहलाती है , वह वैरागी जो काम बना | तू उससे ही मिलवा देना , उसमे ही प्रीत जगा देना |मुझे उसकी शरण लगा देना | तू ही श्रद्धा का पूरक है , तुझसे ही सारी मूरत है | तू श्रेष्ठ मार्ग प्रियतम मेरा , प्रिय मुझको न बिसरा देना | ले हाथ पकड़कर चल संगी, है जहाँ विराजे अड़भंगी |"
-Ruchi Dixit