चिंतामणि।
झूठी चिंता क्यों करें
जब चिंतन करें
चिंतामणि।
हरि के दरश परस भए
पारसमणि ।
मनुवां काहे होत अधीर ।
मन को लगा दे परोपकार में
और हर ले पराई पीर।
जीवन हो जाए शीतल समीर।
मनुवां ये माया का संसार है एक दिन तो जाना है।
फिर क्यों भटके मानव मन प्राण पखेरू
बन परिंदा उड़ जाना है।
-Anita Sinha