मैं और मेरे अह्सास
आँखों से आंखे तक़राई l
खूबसूरत आहत आई ll
दूर तो जाना चाहते थे l
फ़िर बीच में चाहत आई ll
सपनों की नगरी से होकर l
यादें घूम के वापस आई ll
ना इलाज दर्द पा लिया l
के दवाई न माफक आई ll
आँखों मे बसाने अकेले l
चुप के छत पे जानम आई ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह