English Quote in Poem by Pramila Kaushik

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सर्वोच्च न्यायालय

देश की जनता ही चुनती है सरकारें
हो केन्द्र सरकार या राज्य सरकारें।
बड़ी आशाएँ पालती है जनता मन में
चुनते ही टूटने लगती हैं वे कुछ छन में।

सरकारें करतीं, एक दूसरे पर ही आक्षेप
समस्याओं पर होता नहीं कभी पटाक्षेप।
सर्वोच्च न्यायालय लगाता है जब फटकार
तब अँगड़ाई ले जागने लगती हैं सरकार।

कोरोना - प्रबंधन किसी ने कुछ न किया
केवल एक दूसरे पर ही दोष थोप दिया।
वैक्सीन भी देश की जनता को न दिया
प्रशंसा पाने हित विदेशों में भेज दिया।

आॅक्सीज़न प्रबंधन भी, न कर पाईं सरकार
जब देश में मच रहा था, हर ओर हाहाकार।
यहाँ से वहाँ बेचारे मरीज भाग रहे लाचार
आॅक्सीज़न का तब चल रहा था व्यापार।

लाॅकडाउन में मज़दूर घर पैदल जा रहे थे
तो कहीं क्रशर में बैठ छिप कर जा रहे थे।
कोई साइकिल पर सैकड़ों मील जा रहे थे
तो कोई रास्ते में ही दम तोड़े मर जा रहे थे।

सर्वोच्च अदालत जब पर्दे पर आई थी
हर सरकार तभी, हरकत में आई थी।
आॅक्सीज़न - वैक्सीन तभी मिल पाई थीं
घर जाने, मज़दूरों को बसें मिल पाईं थीं।

आज प्रदूषण चरमसीमा जब पार कर गया
वातावरण सबके लिए दमघोंटू जब बन गया।
सर्वोच्च न्यायालय ने लिया था जब संज्ञान
तब ही सरकारें स्थिति पर दे पाईं हैं कान।

सरकारों ने देखो! दिमाग के घोड़े दौड़ाए हैं स्पेशल टास्क फोर्स व उड़न दस्ते बनाए हैं।
तो किसी सरकार ने स्कूल यूँ बंद कराए हैं।
जनता को देखो! कैसे सब उल्लू बनाए हैं।

सर्वोच्च अदालत ही देश जब चला रही है
तो हर सरकार फिर कर ही क्या रही है ?
क्यों न हम शासन अदालत के हाथ दे दें
और राष्ट्र को अब सरकार - मुक्त कर दें ?

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अभिव्यक्ति - - - - - - - प्रमिला कौशिक
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English Poem by Pramila Kaushik : 111767739
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