तर्पण पर तुम्हारी स्मृति शेष
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तुम अब पास नही
शायद साथ रहते हो हर पल
तुम्हें देखे सालों बीत गए
तुम सी सूरत वाला
अभी तक कोई दिखा नही
तुमने प्यारी सी सूरत पाई थी
हाँ कभी कभी नज़र
दीवार पर टँगी तुम्हारी तस्वीर
पर चली जाती है
सूखे फूलों की
माला के बीच तुम्हें हमेशा
एक सी हँसी हँसते हुए देखती हूँ।
तीज़ -त्योहार,
तुम्हारे पसंद के पकवान
खीर पूरी
अपने तर्पण पर देख
तुम खुश होते होंगें।
कई मिलें तुम्हारे नाम वाले
जो तुम से एक दम अलग ही होंगे
क्योंकि तुम अनोखे थे
तुम्हारा नाम बादलों पर
कभी कभी लिखा दिखता है
जो अचानक हवा के झोंके से
मिट जाया करता है।
कितना पसंद था तुम्हें सोना
देख तर्पण तुम्हारा
याद आता है वो रूठ कर सो जाना
अब कई सालों हो गए
तुम्हे रूठे हुए
ये कौन सी नींद है तुम्हारी
जो कभी खुलती ही नही
इतना भी कोई भला सोता है।
तारों में चमकती तुम्हारी हँसी
चाँद में चमकता तुम्हारा चेहरा
बहुत सालों तक पुकारा तुम्हें
लेकिन अब लगता है
तुम कभी सुन भी सकोगे हमारी आवाज़
शायद तुम्हें वहीं अच्छा लगने लगा है।
यही मनोकामना है कि
तुम जहाँ रहो वहाँ
खुश रहो।
-prema