अबकी बार सावन में आना,
गीली घास पर बैठेंगे दोंनो साथ ।
सुनेंगे कोयल की वो मीठी आवाज़ ,
जिसे सुनकर तुम रोमांचित हो उठते हो मुझे सुनने को।
गीली हवा में मिट्टी की सुंगन्ध,
तुम्हें मेरे स्पर्श को याद दिलाती होगी।
फूलों की खुशबू तुम कहाँ भूल पाते होंगे,
जिससे सदा सुगन्धित रहते थे केश मेरे।
गर्म चाय की पियाली वाले हाथों से,
वो छू लेना मेरे रुख़सरों को
तुम्हें बेचैन तो करता होगा मुझ से मिलने को।
अबकी बार सावन में आना ,
बैठेंगें दोनो साथ,
दरमियान सारे विद्वेष, सन्देह मिट जायें,
और हम फिर से हो जाएं एक।
*******प्रेमा--------
-prema