है किस्सा इसका अन्त यही देह नही देहान्त सही ,
तुम लौटो जाओ घर अपने , सपने लेकर तुम घर अपने , आनन्द समेटे घर अपने | खानाबदोश मेरा जीवन , पीड़ाओं मे ढूँढे कोने , स्वप्न रहे आनन्द सारे , फिर भी मन को लगते प्यारे ,सब झूठ सत्य अब भारी है , चलने की तैयारी है |
भावना..अंश से
-Ruchi Dixit