ओ मेरे चाँद
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ओ मेरे चाँद!
खिड़की पर
रोज़ तेरा आना।
नज़रों से
नज़रों का
यूँ मिल जाना।
हाथों में हाथ
थामे भर रहना।
तेरा मेरा दोनों का
अनकहा सुन लेना।
लंबी रातों का
पलों में बीत जाना।
आह! अब बस सब
यादों में रह जाना।
चाँद रात का यूँ
अमारात्रि में बरबस
बदल जाना।
तेरा अब कभी भी
दिखलाई न देना।
हर रोज़ निशा की
अपलक प्रतीक्षा करना।
तेरे दीदार को
तरसते भटकना।
ज़िंदगी की यह
नियति बन जाना।
अहा! फिर भी
उम्मीद का होना।
सुवासित कर जाए
दिल का हर कोना।
आएगा तू ज़रूर
सदा ज़िंदा रहा
मेरा यह विश्वास।
कभी तो, कहीं तो
मिलेगी झलक तेरी
पलती रही आस।
खिड़की के उधर तू
खिड़की के इधर मैं।
नज़रें मिली होंगी
हाथों में हाथ होंगे।
तू होगा फिर मुझमें
और तुझमें हूँगी मैं।
वाह! आ ही गई
वह प्रतीक्षित रैन।
जब तू है रूबरू
जुड़े हैं तेरे मेरे नैन।
खिड़की पर हैं
तू और मैं।
तू उधर है और
इधर हूँ मैं।
बह रहा है इश्क
मुझसे तुझमें
और तुझसे मुझमें।
अब फिर से
न तू तू रहा
न ही मैं रही मैं।
तू मुझमें समाया
और तुझमें मैं।
ओ मेरे चाँद!
ओ मेरे चाँद!
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रचनाकार - - - प्रमिला कौशिक
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