शरद पूर्णिमा पर दोहे
शरद पूर्णिमा में खिला, चंदा है आकाश।
दूध नहाई-सी धरा,तमसादिक का नाश।।
चंदा की है चाँदनी, सजी-धजी बारात।
मौन धरा है देखती, अनुपम है सौगात।।
धुआँधार अद्भुत दिखे,संँगमरमर चट्टान।
जल प्रपात दुधिया हुआ, शरद पूर्णिमा जान।।
हुआ शरद ऋतु आगमन, मौसम बदले रंग ।
धूप सुहानी अब लगे, मन में भरे उमंग।।
रात अमावस की हटी, ऋतु का है संदेश ।
आई ऋतु मन भावनी, चलो पिया के देश।।
मुकुल खिलेंगे बाग में,अधरों पर मुस्कान।
भौरों के संगीत ने, छेड़ी मधुरिम तान।।
क्वाँर मास की पूर्णिमा, शरदोत्सव का रंग।
अमरित की बूँदें गिरीं, धरणी ने पी भंग ।।
शीतल पवन बजा रही, तन-मन में सुरताल।
हँसता नभ में चंद्रमा, करता बड़ा कमाल।।
अगहन मासी शरद ऋतु, देती यह संदेश।
मौसम ने ली करवटें, कट जाएँगें क्लेश।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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