काया के जर्जर होते ही.......
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुई हैं।
चिंताओं में डूबा यह मन,
पीड़ाएँ धनवान हुई हैं।।
सुख-दुख तो आना जाना है,
जीवन में वरदान हुए हैं।
कलयुग ने है करवट बदला,
धूमिल सब अरमान हुए हैं ।।
काल चक्र से छले गए सब,
आशाएँ शमशान हुईं हैं।
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुई हैं.......
किस पर दोष मढ़ेंगे जग में ,
अपनों पर अभिमान रहा है ।
एक-एक सपने सब रूठे ,
पग-पग पर अपमान सहा है।।
मंजिल की क्या करें शिकायत,
राहें तक अनजान हुई हैं।
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुई हैं.....
कष्ट सहे हैं कितने लेकिन,
सबको ही सम्मान दिया है।।
जीवन की आपा धापी में,
हमसे जो कुछ बना दिया है।
अच्छा जीवन जीने खातिर,
दिन-रातें कुर्बान हुईं हैं।
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुईं हैं.....
छल-छद्मों के चक्र व्यूह से,
नहीं निकलना जग को आया।
दुर्योधन के षड़यंत्रों से,
छुटकारा भी कब मिल पाया।।
मोहपाश से सब हैं जकड़े,
पतवारें बेजान हुई हैं।
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुई हैं.....
डूब रहीं आशाएँ सबकी ,
जो जग में प्रतिमान गढ़े थे।
दिवा स्वप्न बिखरे टूटे सब,
जो सबने अनुमान गढ़े थे।।
प्रभु ने जो है लिखा भाग्य में,
वही आज यजमान हुई हैं।
काया के जर्जर होते ही,
छलनाएँ बलवान हुई हैं.....
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "