आँसुओं की दो बू्द
आंसुओं की बूंद जब हृदय में भाव जगाती है
कोरे कागज पर वो एक कविता गढ़ जाती है
बिरह रूपी यह बादल जब भी बरसे धरा पर
सोए मानस को ये कविता क्रांति बन जाती हैं
अंधकार धरा पर निशि रूपी वन जाए पहरा
खुद का निज भूलों से जुड़ जाए रिश्ता गहरा
तब शब्द बनकर यह कविता एहसासों से हमें
बीते कल का गीत बनकर हम को बहलाती है
गद्दारों के हर मंसूबे कागज पर हैं वे छप जाते
स्वीकारें या बिसराएं ये इतिहासों में जड़ जाते
इतिहासों की भूलों पर हम आंसू तब बरसाते
मृत इंसान में शब्द की धार वीर रस जगाती हैं
प्रीति धागे मानव को विरोधाभासी बन जाए
उपहासों के बाणों से ही कालीदास बन जाए
मेघदूतम शाकुंतलम ग्रंथ तब यहां रच जाते
करुणा वाणी तुलसी की रामायण रचाती है
उपहासों ने ही तुलसीदास ,कालिदास बनाए
शब्दों के हस्ताक्षर बनकर इतिहासों में छाए
निरादर हुआ ब्यक्ति इतिहासों में छप जाता
उसकी बाणी शब्द बन कर ग्रंथ बन जाती है
बंदूकों की गोली से इंसान पल में ही मर जाते
शब्दों के बाणों से नर जीवन भर मरते जाते
शब्दों की भाषा से जग में क्रांति छिड़ती आई
शब्दों की बाणी ही वो महाभारत बन जाती है
पी एस यादव अजनबी बिसौली बदायूं उत्तर प्रदेश की
मौलिक एवं स्वरचित 🙏