श्री कृष्ण, मेरी आत्मा है
जीवन है, परमात्मा है
जीवन का महाभारत भी सत्य है
कलयुग है, तो मन में भी असत्य है
हार जब भी हुई, कौरव जैसी लगती
जीत हुई तो लगा, गीता मन मे बसती
असंयमित जग-वासनाओं में डूबा मन
जरूरतों के जाल में फंसा, बिगड़ा तन
निराशा के दलदल में मोह, माया, धन
मामला गंभीर, सँभाल मुझे, मेरे कृष्ण
अति चंचल मन करता, तन को गहन मटमैला
चालाकियों के सहारे चलता जीवन का खेला
भूल होती हजारों, क्षमा कर देता, वो नँदलाल
जय बोलो आज, भला ही करेगा हमारा गोपाल
✍️ कमल भंसाली