बर्बर-तालिबान आतंकी....
(आल्हा छंद)
बर्बर-तालिबान कहावै , त्राहिमाम करता अफगान।
कैसी विपदा है यह आई, देख रहा यह जग हैरान।।
सज्जनता का गला काटते, मानवता का कर अपमान।
धर्म लबादा ओढ़े जग में, कैसे भक्त बने हैवान ।।
तालिबान का अर्थ छात्र है, ढूँढ़े मिले न यह पहचान ।
हाथों में बन्दूकें थामें, निर्ममता से लेते जान ।।
खड़ी फौज ने आँखें मूँदी, घर में घुस आया शैतान।
कैद हुईं बुर्कों में नारी, सपने खोए कब्रिस्तान।।
मानवता के दुश्मन सारे, बच्चों का है नर्किस्तान।
सदी बीसवीं है यह देखो, शरियत पर होते कुर्बान।।
डर कर भाग रहे अपनों से, मार काट अफगानिस्तान।
खून खराबा नादिरशाही, सबके पीछे पाकिस्तान।।
रूस अमरिका थक कर हारे, रिपुदल फिर विजयी मैदान।
हाथ जोड़ अफगानी करते, मदद करो तुम हे भगवान ।।
बजा रहे खुश होकर ताली,भारत में कुछ हैं नादान।
असुर वृत्ति है जिनके अंदर, इनको अपने पर अभिमान।।
हे ईश्वर सद्भाव जगा दो, मानवता का हो सम्मान।
प्रेम शांति से रहें सभी जन, इसमें जग का है कल्यान।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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