शीर्षक: बेचारा
बहुत दूर तक चला, अब थक गया हूँ
रातें लम्बी, अब तो तन्हां भी हो गया हूँ
कहाँ जाना था, कहाँ पँहुचे, कह नहीं सकता
मंजिल कोई पास नहीं, ठहर भी नहीं सकता
बड़ा बुरा हाल है , सिर्फ जीने का ही ख्याल है
सोचा नहीं, इसलिए कुछ न बनने का मलाल है
अपनों की बस्ती में, अब बेसहारा कहलाता हूँ
रिश्तों की बिरादरी में, अब बेचारा कहलाता हूँ
उम्र के इस पायदान पर, वो बुजुर्ग जरुर कहते
कुछ दिन के मेहमान होने का, विश्वास दिला देते
अच्छों को बुरा साबित करना, दुनिया की आदत है
जिस हाल में हूँ, उसमें अब सिर्फ समय की बात है
✍️ कमल भंसाली
-Kamal Bhansali