यह ग़जल मुस्लिम धर्म या मुस्लिम समुदाय पर चोट करने के लिए नहीं लिखी गई है, यह ग़जल तो मात्र इंसानियत की मिसाल को डुबो देने वाली हैवानियत पर लिखी गई है।
मै उम्मीद करता हूँ की किसी भी भाई - बंधु को आहत करने योग्य नहीं है।
क्रूरता की सारी हदें फिर पार हो गयी
इंसानियत पर हैवानियत सवार हो गयी।।
क्या खूब थी सख्सियत अफ़ग़ान की
फिर तालिबान क्यूँ सरकार हो गयी।।
इल्म क्या उनको नहीं कुछ भी रहा
आज मासूमियत दरकिनार हो गयी।।
बेखौफ़ मंजर हो गया उस मुल्क में
बेकर्ज थी आलम कर्जदार हो गयी।।
तान पर बान चढ़ मृदंग करने लगा
इंसानियत थी मगर बेकार हो गयी।।
लोग देखें हैं सभी हैवानियत का समर
बादशाहों की नज़र अंधियार हो गयी।।
होकर तमाशबी हस रहे हैं लोग सारे
राजनीति सख्सियत लाचार हो गयी।।
क्या कहे ज्योति कौन है किसके लिए
ताकतवरों की ताकतें शर्मसार हो गयी।।
।। ज्योति प्रकाश राय।।