अजर अमर है
और वैसी ही रहेगी ,
मा भारती हमारी,
देती रहेगी प्रेरणा
अनवरत हमें
जीने के लिए
उमंग उत्साह से ,
सर उन्नत रख के,
रविदत्त चैतन्य के सहारे
ओजसी शान से।
हो ही सकती नहीं
वय ग्रस्त मा कभी भी
किसी भी कारन से ।
अमर है वह , और
रहेगी शाश्वती ही
मा अपनी , भारती !
- रंतिदेव वि. त्रिवेदी ' रवि '
१५ - ०८ - ३०२१