शीर्षक: स्वतंत्रता दिवस
कह नहीं सकते, जिंदगी सँवर रही या बिखर रही
या नाजायज, न मांगी हुई, कोई नई सौगात दे रही
अब साँस लेने के अधिकार भी छीने जा रहे है
हम स्वतंत्र कहाँ है ? कितने अनुसंधान हो रहे है ?
तलाश कहीं उसकी तो नहीं हो रही, जो नहीं है
इतनी चर्चाये, आखिर, किस बात की हो रही है ?
स्वतंत्रता की बात करे, कितना संतोष होता है ?
हाशिये पर जिंदगी, हमें क्यो विश्वास नहीं होता है ?
क्या कहते किसी को ? जब स्वयं को न कह पाते
हाँ, स्वतंत्र है, कहने में ही, ख्याल सब बदल जाते
जीने की कोई कसम न ली, फिर भी जीना तो चाहते
सच कहे, मुँह बंद , फिर भी स्वतंत्रता दिवस तो मनाते
✍️ कमल भंसाली
-Kamal Bhansali