तुम ना आओ तो कोई ग़म नहीं
हमने दर्द को अपना बिस्तर बना लिया है
मुह छुपाने के लिए जगह तो नहीं
मगर हमने तकिये को आंचल बना लिया है
अब तेरी यादों मे मारते तो नहीं
पर यादों को जीने का जरिया बना लिया है
अब हर रोज तुम्हें देखते तो नहीं
पर यादों में देखने का नजरिए बना लिया है
खुद को हमने बदला तो नहीं
पर खुद को कुछ तुम्हारी तरह बना लिया है
-PARIKH MAULIKH