मुश्किलों से इस कदर दोस्ती हो गई है ,
रफ्ता रफ्ता अब जिंदगी बसर हो रही है ,
चराग उम्मीदों वाले कुछ बुझ से गए हैं ,
शायद बद्दुआ किसी की असर हो रही है ,
बस्ती के साहूकारों का मिजाज़ बदल के ,
मुफलिसी प्रति दिन तर-बतर हो रही है ,
मौत शिकायत करे भी तो किस्से करे ,
जिन्दगी ग़म को पीकर अमर हो रही है ,
मैं हो गया मुसाफिर चलते यूं ही राहों में ,
मंज़िल ख़ुद ही दूर जाके सफ़र हो रही है ,
बादल बरसा नहीं एक अरसे से चाहकर ,
पर घरौंदे के लिए बारिश कहर हो रही है ,
तोड़कर आया हूं मैं सभी बंधनों को आज ,
कम यहां सासों की लेकिन उमर हो रही है ,