.... हा इश्क है मुझे.....
इश्क है मुझे पर तुम्हें कैसे बताऊं
डर लगती है मोहब्बत से थोड़ी
कही बदनाम ना हो जाऊं!!
कुछ कदमों का साथ हो तो
शायद तेरे साथ चला जाऊ
बात मेरी रु ह की हैं मगर
ऐसे कैसे गैरो से जुङ जाऊ!!
दर्द गम आंसू और जिल्लत
बहुत कुछ सही हूं अब तक
तुम भी मिलकर बिछड़ोगे अगर
फिर मोहब्बत को क्यु गले लगाऊ!!
प्रेम शब्द समर्पण का है नाम
राधा कृष्ण सा ना प्रेम यहां
इश्क बाजार और जिस्म का व्यापार
अंधेरों की नगरी में, कैसे उजाला को लाऊ!!
लिपट गई इश्क मोहब्बत का लिबास पहनकर
अगर यह पाप की मैंने इश्क करने की
तुम्हें बताओ किस जल-धारा में
खुद को गोते लगाऊ!!
- माया