मैं और मेरे अह्सास
कभी आंखे तो कभी चहेरा पढ लीया करो l
हर बात लफ्जो से बताना मुमकीन तो नही।l
सुबह शाम तुम्हें बिना भूले फोन करते रहते हैं l
हर बार प्यार को जताना मुमकीन तो नही।l
ये क्या बात हुई कि मुह फ़ेर के दूर बैठे हो l
महफ़िल मे गले से लगाना मुमकीन तो नही।l
मुहब्बत मे इश्क़ की ख़ुशी मे जानबूझकर l
खुद हारे हुए को हराना मुमकीन तो नही।l
दर्शिता